अस्वीकृत. Owen Jones
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“हम ऊपर जाएँ, इससे पहले, बुआ डा, मुझे आपको यह बताने की ज़रूरत है कि वह पिछली पूरी रात बिस्तर पर ज्यादातर समय सीधा बैठा था, उसकी सफ़ेद त्वचा और लाल पुतलियों वाली गुलाबी आँखें अंधेरे में एक प्रकाश स्तम्भ की तरह जगमगा रही थीं। ओह, और जब उसने हमसे बात की! हे मेरे बुद्ध! मैं ने ऐसा कभी कुछ नहीं सुना। उसने कहा ‘शुभ संध्या, परिवार’ और वह भी कैसी अजीब, भारी सी आवाज़ थी….. यह वाकई डरावना था।”
“अब इसकी परवाह मत करो…. चलो उस पर एक नज़र डालें।”
वे मिल्कशेक के बर्तन के साथ ऊपर गए और कमरे में दाखिल हुए। सारी खिड़कियाँ बंद थीं, तो अंदर घोर अंधेरा था। वान ने फिर से बाहर कदम रखा और एक मोमबत्ती ले आई, लाइटर से इसे जलाया, जो पास ही एक डोरी से लटका हुआ था और डा का साथ देने के लिए वापस कमरे में गई, जो उस बिस्तर के नजदीक पहुँच रही थी, जहां हेंग सोया हुआ था।
मोमबत्ती की रौशनी में कोई नई चीज़ नहीं दिखाई दी, तो औरतों ने मच्छरदानी को बांध दिया और बिस्तर के एक ओर बैठ गईं। वान ने चादर खींच ली, वह लेटा हुआ था, चित्त, नग्न, बाहें क्रॉस बनाती हुई येशु की तरह फैली हुई थीं, आँखें खुली हुई थीं, एक भूतिया, अभिव्यक्ति विहीन मुखौटे पर गुलाबी बादामों के जोड़े में दो गहरे-लाल घेरे, उसके होंठ, उसके मुँह के आस पास दो छोटी लकीरें थीं।
वान ने सवालिया नज़रों से डा की ओर देखा, जो अपने मरीज का अध्ययन कर रही थीं। उसने अपने हाथ का पिछला हिस्सा उसके माथे पर रखा और उसे कमरे के तापमान पर पा कर उसे ताज्जुब नहीं हुआ।
“आज तुम कैसे हो, हेंग?” उसकी बीवी ने पूछा।
“भूखा….. नहीं, प्यासा,” उसने कहा, शब्द उसके मुंह से जैसे लुढ़कते हुए बाहर आए, जैसे पहाड़ों पर चट्टानें खिसकने से कोई गोल पत्थर लुढ़कता हुआ नीचे आता है।
“ठीक है, मेरे प्यारे, फिर उठ जाओ। हम तुम्हारे लिए थोड़ा और बढ़िया मिल्कशेक