चौथाई चाँद. Massimo Longo E Maria Grazia Gullo
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“टीवी और वीडियो गेम चले गए। चरमवाद की पराकाष्ठा है।”
एलियो बिस्तर पर लेटा था। वह अपना शरीर हिला नहीं सकता था। उसको इतना हिले डुले सालों गुज़र चुके थे।
स्कूल में जिम की क्लास से बचने के लिए वह हमेशा कोई न कोई बहाना ढूंढ लेता था।
“एलियो, अपनी बहन को बुलाओ। मुझे रात के खाने के लिए उसकी मदद चाहिए।”
एलियो ने जो सुना था, उस पर उसे यकीन नहीं हुआ। वह वास्तविक नहीं हो सकती थी।
लेकिन इडा आंटी ने ऐसे लहजे में बात की थी कि वह नकारात्मक जवाब दे ही नहीं पाया।
“एलियो, जो मैं ने कहा, क्या तुमने सुना?”
“अच्छा।” उसने जवाब दिया और अनमने मन से सीढ़ियों की ओर चला।
वह लकड़ी की सीढ़ियों के ठीक नीचे ठहर गया और उसका नाम पुकारने लगा।
अपने भाई के चिल्लाने के बावजूद गाइया जवाब नहीं दे रही थी।
फिर एलियो ने और भी नाराजी के साथ सीढ़ियाँ चढ़ने का फैसला किया। दुछत्ती के नीम अंधेरे कमरे में वह और भी बेचैनी महसूस करने लगा। हर कदम के साथ दुछत्ती तक पहुँचना नामुमकिन सा महसूस हो रहा था। जैसे ही उसका सिर छत को छूने लगा, उसने अपनी बहन का नाम पुकारना शुरू किया। लेकिन फिर से, कोई जवाब नहीं मिला। उसने खुद को आखिरी सीढ़ी के ऊपर घसीटा। और तब ऊपर से किसी चीज़ ने उसकी बांह पकड़ ली।
वह आँखें बंद किए, चेहरे पर डर के भाव लिए बिना हिले-डुले खड़ा रह गया।
"पकड़ लिया!" गाइया चिल्लाई, जिसने ध्यान दिया था कि एलियो डर गया है।
"दूर हटो। तुमने मुझे डरा दिया। तुम्हें जवाब देना चाहिए था।"
गाइया ने ध्यान नहीं दिया, क्योंकि उसे जो मिला था, उससे वह चकित थी। उसने कहा:
"यह दुछत्ती अजीब चीज़ों से भरी पड़ी है। यहाँ आओ। इसे देखो..."
एलियो ने सीढ़ियाँ पार कीं और अपनी बहन के पीछे-पीछे गया, जो पुरानी तस्वीरों को उलट-पलट रही थी।
“यह बहुत मज़ेदार है।” उसने फोटो एलियो की ओर बढ़ाते हुए