चौथाई चाँद. Massimo Longo E Maria Grazia Gullo
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“गाइया, मेरे साथ आओ, चलो हम पैन्ट्री कार में चल कर कुछ और नाश्ता ले आएं। यह सफर लंबा है और हमें अपनी सारी शक्ति जुटानी होगी। एलियो सामान की निगरानी कर सकता है। कोई उनके पास तक नहीं आएगा। अगर कोई आए तो आवाज देना।” लिबेरो ने अपने ममेरे भाई से कहा, “और अगर तुम ऐसे लंबोतरा चेहरा बनाना बंद कर दोगे तो हम तुम्हारे खाने के लिए भी कुछ ले आएंगे....”
गाइया और लिबेरो डब्बे से निकल गए, जो एलियो के लिए बड़ी राहत की बात थी, क्योंकि वह अकेला रहना चाहता था।
वह खिड़की के बाहर बार बार आते एक से नज़ारों को घूर रहा था। उन्होंने अभी अभी शहर के औद्योगिक क्षेत्र को पार किया था और अब चारों ओर खेतों और पहाड़ों का सिलसिला शुरू हो गया था, जो बार बार दिखाई दे रहे थे।
अचानक खिड़की के कांच पर उसने एक बूढ़े व्यक्ति का प्रतिबिंब देखा, जो उसकी सीट के ठीक बगल में, गलियारे वाली सीट पर बैठा था।
वह डब्बे में कब आया? उसने दरवाजों के खुलने की आवाज नहीं सुनी थी।
बूढ़ा व्यक्ति काला लिबास पहने हुए थे और उसने अपनी नाक पर एक अजीब सा चश्मा चढ़ा रखा था। वह एक काले चमड़े की किताब पढ़ रहा था, जो सदियों पुरानी दिख रही थी, जिसके पन्ने टिशू पेपर से बने थे। उसने अपने सर पर हैट पहन रखी थी, जिसने उसके चेहरे को ढक रखा था। पूरा दृश्य बेचैन कर देने वाला था।
एलियो पीछे नहीं पलटा, लेकिन वह खिड़की में दिखते प्रतिबिंब के माध्यम से उस पर नजर रखे हुए था। उसने उस आदमी के साथ अकेले होने की वजह से डर महसूस किया। उस पल वह निश्चित रूप से चाहता था कि काश उसका बड़ा और ताकतवर फुफेरा भाई उसके बाजू में बैठा होता। हालांकि न वह वापस लौट रहा था, न गाइया।
इधर बूढ़ा व्यक्ति अब भी अपनी किताब पढ़ रहा था। बीच बीच में वह एक पुरानी घड़ी में समय देख लेता था, जो उसने अपनी जैकेट की ऊपरी जेब में