चौथाई चाँद. Massimo Longo E Maria Grazia Gullo
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“तो? कुछ नहीं? तुम्हारे लिए कोई चीज़ माने नहीं रखती। चलो भी, माँ और पापा को बताओ कि तुम गाँव में भी कुछ करने वाले नहीं हो।”
“एलियो ने उससे सहमत होते हुए हाँ में सिर हिलाया।”
“अब बस करो, गाइया! अब यह सब मत करो! हम पहले ही निर्णय ले चुके हैं। तुम्हारा भाई लिबेरो तुम्हें स्टेशन पर लेने आएगा।” कार्लो ने वार्तालाप पर विराम लगा दिया।
गाइया भाग गई, जो देखने में ही निराश और गुस्सा लग रही थी।
“वह इससे निपट लेगी।” जूलिया ने कहा, जो अपनी बेटी के जोशीले स्वभाव को जानती थी।
एलियो बिना किसी का ध्यान खींचे अपने कमरे में लौट गया।
कार्लो चकित था। हालांकि उसे विश्वास था कि उनका निर्णय आगे चल कर बेहतरीन साबित होगा।
शुक्रवार बहुत जल्दी आ गया। कार्लो अपने भांजे को स्टेशन से लेने गया। वह उसे दोबारा गले लगाने के विचार से ही अत्यधिक खुश था।
लिबेरो एक खुश मिजाज, अल्हड़ और स्वच्छंद लड़का था। वह लंबा और दुबला था, लेकिन इतना नहीं कि उसकी हड्डियाँ दिखने लगें। उसका चेहरा धूप से सांवला हो गया था, उसके हाथ बड़े थे और पारिवारिक खेत में काम करने के अभ्यस्त थे। उसकी हरी आँखें उसकी त्वचा से मैच नहीं करती थीं और उसके छोटे भूरे बाल 50वें दशक के आदमियों की तरह उल्टी मांग में कढ़े हुए थे। उसने अपने मामा को कस कर गले लगाया और फिर उनकी बातों का सिलसिला बंद ही नहीं हुआ।
कार्लो उसे ताज्जुब से देख रहा था। उसे वह समय अच्छी तरह याद था, जब लिबेरो बीमार, उदासीन और चिड़चिड़ा था। हालांकि लिबेरो कोई खास बुद्धिमान नहीं था, लेकिन जो सादा जीवन वह जी रहा था, उसने उसे खुशमिजाज बना दिया था। कार्लो चाहता था कि एलियो अपने भाई को सकारात्मकता के साथ गले लगाए। इस बीच लिबेरो अपनी नाक कार की खिड़की में घुसेड़े था और वह रास्ते में दिखने वाली हर चीज़ के बारे में सवाल पूछ रहा था।
घर पर सब लोग उसका इंतज़ार कर रहे थे।
ज्यूलिया आखिरी चीज़ें पैक करते